बीजिंग। चनी की झेजियांग यूनिवर्सिटी की टीम कह रही है कि उन्होंने वह हासिल कर लिया है, जो अभी तक दुनिया नहीं कर पाई… टोटल रडार वैनिशिंग। एक ऐसी ‘क्लोक्ड’ मशीन जो आसमान चीरते हुए उड़ जाए और रडार तक समझ न पाए कि उसके सिर के ऊपर मौत का परिंदा गुजर चुका है। इसी वाई-फाई डरावने भविष्य को हकीकत में बदलने का दावा किया है चीन की झेजियांग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने। उन्होंने एक ‘एयरो-एम्फिबियस इनविजिबिलिटी क्लोक’ विकसित किया है। सीधे शब्दों में, ऐसा स्टेल्थ कवच जो विमान को रडार में पूरी तरह गायब कर दे। और अब चीन चाहता है कि यह ‘अदृश्य टेक्नोलॉजी’ उसकी ड्रोन आर्मी पर लगाई जाए। यानी भविष्य का युद्ध: साइलेंट ड्रोन। अदृश्य ड्रोन।
जैसा कि पॉपुलरमैकेनिक्स की एक रिपोर्ट में बताया जा रहा है। अगर यह सच है, तो यह टेक्नोलॉजी युद्ध के नियम बदलने की क्षमता रखती है। पर सवाल भी उतना ही बड़ा है कि क्या यह हकीकत है या चीन का एक और हाईप-ड्रिवेन मिलिट्री शोबाज़ी? चीनी सेना ने अदृश्यता के लबादों को प्रयोगशाला से बाहर निकालकर बादलों में पहुंचाने का काम किया है। 2018 तक, गुआंग्की एडवांस्ड इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कथित तौर पर हर साल 1,00,000 वर्ग फुट से ज़्यादा विद्युत चुम्बकीय सामग्री का उत्पादन कर रहा था। रक्षा विश्लेषक जेफरी लिन और पी।डब्ल्यू। सिंगर के अनुसार, ये सामग्री चीन के पांचवीं पीढ़ी के युद्धक विमान, चेंगदू जे-20 “माइटी ड्रैगन” के लिए बनाई गई थी।
झेजियांग विश्वविद्यालय की रिसर्च टीम ने अपना अदृश्यता लबादा एक तेज़ गति वाले ड्रोन के लिए डिज़ाइन किया था, इसलिए उन्हें यह सुनिश्चित करना था कि यह किसी भी मौसम और किसी भी वातावरण में, चाहे वह हवा हो, पानी हो या ज़मीन, किसी भी बड़ी, गतिशील वस्तु को छिपा सके। झेजियांग विश्वविद्यालय की नई लबादा तकनीक को चीनी युद्धक विमानों पर लागू नहीं किया गया है क्योंकि इसका उद्देश्य (कम से कम शुरुआत में) चीन के विशाल, बढ़ते ड्रोन बेड़े पर इस्तेमाल करना है। किसी ड्रोन या ड्रोनों के समूह को वास्तविक अदृश्यता प्रदान करना, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका या उसके सहयोगियों के साथ किसी भी संभावित संघर्ष में चीन के लिए निर्णायक लाभ होगा।
परंपरागत विमान रडार तरंगों को वापस भेजते हैं और पकड़े जाते हैं। लेकिन चीन का दावा है कि यह क्लोक उन तरंगों को ऐसे मोड़ देता है जैसे वे किसी अदृश्य सुरंग से होकर गुजर रही हों… ना परावर्तन, ना सिग्नल और ना अलर्ट। सिर्फ रडार ही नहीं, यह टेक्नोलॉजी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के बड़े हिस्से को मैनेज करने का दावा करती है, यानी विमान आंखों से दिखे या न दिखे… रडार भी उसे छू नहीं पाएगा। दुनिया दशकों से स्टेल्थ प्लेटफॉर्म बनाती रही है: एफ-22, एफ -35, बी-2 स्प्रिट जैसे दिग्गजों को छुपाने के लिए। ग्रेफीन और कार्बन फाइबर जैसे अवशोषक पदार्थ, फ्लैट-एंगल डिज़ाइन, रडार सिग्नेचर को ‘पंछी’ जैसा दिखाना… लेकिन इन सबके बावजूद, सही फ़्रीक्वेंसी का रडार इन्हें पकड़ लेता है। यानी स्टेल्थ अब तक कभी पूरी तरह गायब नहीं हुआ।
———————–
📝 Disclaimer
The content of this post is not originally published by us. The news and information provided here are sourced from trusted online sources, including NewsOnline.co.in
. We share this content only for informational and educational purposes. All rights to the original content belong to their respective owners. If you are the original author or copyright holder and wish to have this content removed or modified, please contact us, and we will take immediate action.


