वाशिंगटन । दूसरे विश्व युद्ध से लेकर बाद की लड़ाइयों में अमेरिकी के 40,000 से ज्यादा सैनिक समुद्र में लापता होने का अनुमान हैं। इन लापता सैनिकों को खोजने में वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। इन सैनिकों की कब्रें अक्सर जहाजों या लड़ाकू विमानों के मलबे के आसपास ही मानी जाती हैं। अब अमेरिकी वैज्ञानिक और रक्षा एजेंसी डिफेंस पीओडब्ल्यू/एमआईए अकाउंटिंग एजेंसी (डीपीएए) मिलकर एक नई रिसर्च कर रही है, ताकि इन खोए हुए सैनिकों के अवशेषों का पता लगाया जा सके। इस कोशिश के केंद्र में एनवायरमेंटल डीएनए (ईडीएनए) है। इस तकनीक में पानी और तलछट में बिखरे सूक्ष्म डीएनए कणों को पकड़कर यह तय किया जाएगा, क्या वहां कभी मानव अवशेष मौजूद रहे हैं या नहीं।
रिपोर्ट के मुताबिक डीपीएए के चीफ ऑफ इनोवेशन जेसी स्टीफन कहते हैं, ‘समुद्र के नीचे की जांच बेहद मुश्किल होती है, क्योंकि अक्सर अवशेष बिखर जाते हैं। इसलिए हमने ईडीएनए को एक जैविक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करने का फैसला किया।’ उनका कहना है कि पारंपरिक समंदर के तल की खुदाई महंगी, धीमी और बार-बार निष्फल रहती है। इसलिए ईडीएनए को एक नया ‘बायोलॉजिकल स्काउट’ माना जा रहा है।
इस पूरी रिसर्च में सबसे पहले साइपन के बंदरगाह की गहराइयों में मौजूद एक विमान का इस्तेमाल हुआ है। इटली और लेक ह्यूरॉन (अमेरिका-कनाडा) के 12 जहाजों और विमानों से पानी और तलछट के नमूने इकट्ठे किए। एक पुराना अमेरिकी विमान ग्रुम्मन टीबीएफ एवेंजर साइपन के समुद्र में है। ये अब मूंगे की चट्टानों में घिर चुका है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 1944 की बैटल ऑफ साइपन में यह विमान गिरा था। उस वक्त तीन सैनिक सवार थे, जिनमें से दो के अवशेष आज तक नहीं मिले। वैज्ञानिकों ने इसी और अन्य मलबों से पानी और तलछट के नमूने इकट्ठे किए और उन्हें विश्लेषण के लिए लैब भेजा।
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