इस्लामबाद। आतंकी हाफिज सईद फिर राजनीति में सक्रिय हो रहा है और अब इसमें खुद पाकिस्तान सरकार के मंत्री भी शामिल हो रहे हैं। पीएम शहबाज शरीफ के करीबी और गृह राज्य मंत्री तालाल चौधरी हाल ही में हाफिज सईद की प्रतिबंधित संगठन जमात-उद-दावा के राजनीतिक विंग पाकिस्तान मरकजी मुस्लिम लीग के दफ्तर पहुंचे। ये दफ्तर पंजाब के फैसलाबाद में है।
तालाल चौधरी का पीएमएमएल हाउस में जाकर वहां के नेताओं से मुलाकात करना पाकिस्तान में राजनीतिक गलियारों में बड़ा संदेश माना जा रहा है। इसे शहबाज सरकार की ओर से हाफिज सईद के संगठन को ऑफिशियल संरक्षण देने जैसा कदम बताया जा रहा है। हाफिज सईद वही शख्स है जिसे मुंबई 26/11 हमले का मास्टरमाइंड माना जाता है और जो इस समय लाहौर की कोट लखपत जेल में आतंकी फंडिंग के मामलों में सजा काट रहा है।
पीएमएमएल की ओर से जारी बयान में कहा गया कि बैठक के दौरान देश की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा हुई। दोनों पक्षों ने राष्ट्रीय एकता, राजनीतिक स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निरंतरता पर जोर दिया। बयान के मुताबिक यह भी सहमति बनी कि मौजूदा हालात में सभी राजनीतिक दलों को मिलकर एक रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए ताकि देश में सामाजिक सौहार्द और लोकतांत्रिक संस्थानों को मजबूती दी जा सके, लेकिन लोगों का कहना है कि सब लोकतंत्र की नहीं बल्कि हाफिज सईद की “राजनीतिक वापसी” की तैयारी है।
यह पहली बार है जब किसी संघीय मंत्री ने पीएमएमएल के दफ्तर का दौरा किया। इससे पहले पंजाब विधानसभा के स्पीकर मलिक अहमद खान ने कासुर जिले में पीएमएमएल की रैली में शिरकत की थी और वहां सईद की खुलकर तारीफ की थी। बताया जा रहा है कि मई में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच पीएमएमएल अचानक फिर से सक्रिय हो गया। सूत्रों का कहना है कि संगठन अब सरकारी छत्रछाया में काम कर रहा है और खुलेआम सभाएं और प्रचार अभियान चला रहा है।
सईद के संगठन ने खुद को राजनीतिक दल के रूप में पेश कर पाकिस्तान की जनता के बीच वैधता पाने की कोशिश शुरू कर दी है। यह वही पुरानी रणनीति है, जिसमें आतंकी संगठन अपने नाम बदलकर और “लोकतांत्रिक एजेंडा” दिखाकर खुद को जनता का प्रतिनिधि बताने लगते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे पाकिस्तान के अंदर कट्टरपंथी राजनीति को बल मिलेगा और आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय की कोशिशों को भी झटका लगेगा।
भारत पहले ही कई बार संयुक्त राष्ट्र और एफएटीएफ जैसे मंचों पर पाकिस्तान को चेतावनी दे चुका है कि आतंकी संगठनों के खिलाफ दिखावटी कार्रवाई से काम नहीं चलेगा। ऐसे में किसी मंत्री का सईद के लोगों से मिलना न सिर्फ पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को उजागर करता है, बल्कि आतंकी मानसिकता के राजनीतिककरण की पुष्टि भी करता है। कूटनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि शहबाज शरीफ सरकार का यह रुख आने वाले महीनों में भारत-पाक संबंधों को और ठंडा कर सकता है। वहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान की छवि को भी गहरा नुकसान होगा।
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