व्यापार: देश के ग्रामीण, कम शिक्षित और छोटे परिवार कर्ज के बोझ में ज्यादा डूबे हैं। शहरी, अधिक पढ़े-लिखे और तुलनात्मक रूप से बड़े परिवार कर्ज के मोर्चे पर इनसे बेहतर सि्थति में हैं। देश के पुरुषों के मुकाबले महिलाएं बेहतर स्थिति में हैं और उन पर कर्ज काफी कम है।
सांख्यिकी मंत्रालय की अर्धवार्षिक पत्रिका सर्वेक्षण के ताजा अंक में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 15 फीसदी परिवारों पर किसी न किसी तरह का कर्ज है, जबकि शहरों में यह हिस्सा 14 फीसदी है। वहीं, 15 फीसदी गैर-शिक्षित और 15.7 फीसदी प्राथमिक या माध्यमिक तक पढ़े-लिखे परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं, जबकि उच्च शिक्षित परिवारों में यह आंकड़ा सिर्फ 13.2 फीसदी है।
अध्ययन के मुताबिक, चार लोगों से कम संख्या वाले देश के 17.8 फीसदी परिवार कर्ज तले दबे हैं। यह अपेक्षाकृत बड़े परिवारों की तुलना में अधिक है। अधिकतम आठ लोगों की संख्या वाले सिर्फ 10 फीसदी परिवारों पर ही किसी न किसी तरह का कर्ज है। महिलाओं के मोर्चे पर यह आंकड़ा सिर्फ 9.1 फीसदी है। इनकी तुलना में देश के 20 फीसदी पुरुषों पर किसी न किसी तरह का बकाया कर्ज है।
स्वरोजगारी, वेतनभोगी व दिहाड़ी श्रमिक ज्यादा कर्जदार
अध्ययन के मुताबिक, देश के 32 फीसदी स्वरोजगार लोग कर्ज तले दबे हुए हैं, जो सबसे ज्यादा है। कर्ज लेने वाले वेतनभोगियों की हिस्सेदारी 22.8 फीसदी है। 22.5 फीसदी दिहाड़ी श्रमिकों और हेल्पर के रूप में काम करने वाले 13.4 फीसदी लोगों ने कोई न कोई कर्ज ले रखा है। जो लोग कोई कार्य नहीं करते हैं या काम के लिए उपलब्ध हैं, उनमें से 5.1 फीसदी कर्जदार हैं।
अध्ययन में राष्ट्रीय
सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के 78वें दौर (2020-21) के मल्टीपल इंडिकेटर सर्वे (एमआईएस) के आंकड़ों का उपयोग किया गया है।
दक्षिण भारतीयों में कर्ज भुगतान की क्षमता अधिक
विशेषज्ञों का कहना है कि दक्षिणी राज्यों में लोगों की प्रति व्यक्ति आय अधिक है। उनके पास अधिक संपत्ति है और वित्तीय समावेशन भी बेहतर है। यही कारण है कि इन राज्यों में ऋण लेने और उसे चुकाने की क्षमता भी अधिक है। वहां के लोगों के पास खर्च करने लायक आमदनी भी अधिक है।
- उनका कर्ज बनाम जमा अनुपात भी देश के बाकी हिस्सों से ऊपर है। इसलिए, वहां के लोगों को अपने ऋण की अदायगी का पूरा भरोसा है। वित्तीय संस्थानों को भी उन्हें कर्ज देने में कोई समस्या नहीं है।
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