टोक्यो। जापान के दक्षिणी द्वीप योनागुनी पर मध्यम दूरी की सतह-से-हवा मिसाइल इकाई तैनाती की योजना तेज होने से पूर्वी एशिया में भू-राजनीतिक तनाव और गहरा गया है। रविवार को जापानी रक्षा मंत्री शिंजिरो कोइजूमी ने ताइवान से मात्र 110 किलोमीटर दूर इस सैन्य अड्डे का दौरा किया और स्पष्ट कहा, “यह तैनाती हमले की संभावना कम करेगी, बढ़ाएगी नहीं।” कोइजूमी का यह बयान चीन-जापान के बीच ताइवान विवाद पर बढ़ती कड़वाहट के बीच आया है, जहां अमेरिका भी ताइवान पर आर्थिक व सैन्य दबाव बना रहा है। जापान योनागुनी को अपनी दक्षिणी द्वीप श्रृंखला की रणनीतिक कड़ी मानता है, जो ताइवान जलडमरूमध्य की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
जापान ने पहले ही इशिगाकी द्वीप पर एंटी-शिप मिसाइलें और मियाको पर हवाई निगरानी प्रणाली तैनात कर दी है। कोइजूमी ने जोर देकर कहा कि जापान और अमेरिका को संयुक्त रूप से प्रतिरोध क्षमता मजबूत करनी होगी, क्योंकि “द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह सबसे गंभीर सुरक्षा परिदृश्य है।” उन्होंने क्षेत्रीय तनाव बढ़ने की आशंकाओं को खारिज करते हुए कहा कि मिसाइलें योनागुनी की रक्षा सुनिश्चित करेंगी। यह योजना 2016 से चली आ रही है, जब द्वीप पर सेल्फ-डिफेंस फोर्सेस का बेस स्थापित किया गया था, स्थानीय निवासियों के शुरुआती विरोध के बावजूद।चीन की नाराजगी क्यों बढ़ी? जापानी प्रधानमंत्री साने ताकाइची ने हाल ही में कहा था कि ताइवान पर चीनी हमले की स्थिति में जापान अन्य देशों के साथ सैन्य कार्रवाई में शामिल हो सकता है। चीन ने इसे “उकसावे वाला” बयान बताते हुए कड़ी आपत्ति जताई। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने सोमवार को कहा, “यह मिसाइल तैनाती क्षेत्रीय तनाव पैदा करने और सैन्य टकराव भड़काने की जानबूझकर कोशिश है। ताकाइची के गलत बयानों के साथ मिलकर यह बेहद खतरनाक प्रवृत्ति है।” बीजिंग ने जापान पर “दकियानूसी सोच” का आरोप लगाते हुए आर्थिक दबाव बढ़ाया है, जैसे जापानी सीफूड पर प्रतिबंध। ताइवान ने जापान का खुलकर समर्थन किया। उप विदेश मंत्री फ्रांसिस वू ने कहा, “जापान संप्रभु राष्ट्र है और अपनी सुरक्षा के लिए कदम उठा सकता है। यह ताइवान जलडमरूमध्य में स्थिरता बनाए रखेगा।” जापानी मीडिया के अनुसार, कुछ स्थानीय निवासी तैनाती से चिंतित हैं, क्योंकि यह उन्हें भू-राजनीतिक संघर्ष के केंद्र में ला सकता है।
ताइवान पर अमेरिका का नया दबाव। दूसरी ओर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ताइवान पर चिप्स, टैरिफ और रक्षा बजट के मुद्दों पर कड़ा दबाव डाल रहे हैं। ट्रंप चाहते हैं कि ताइवान अपनी सेमीकंडक्टर उत्पादन का 50 प्रतिशत अमेरिका स्थानांतरित करे, जिसे ताइवान “अव्यावहारिक” बता रहा है। ताइवान के पास विश्व का सबसे उन्नत चिप इकोसिस्टम है, जबकि अमेरिका में पूरी इंडस्ट्री विकसित नहीं हुई। विशेषज्ञों का अनुमान है कि इतना बड़ा शिफ्ट एक दशक से अधिक ले सकता है। अप्रैल 2025 में ट्रंप ने ताइवान पर 32 प्रतिशत टैरिफ लगाए, जो जापान व दक्षिण कोरिया जैसे सहयोगियों से अधिक है। अगस्त में इसे 20 प्रतिशत तक कम किया गया, लेकिन स्टील-एल्यूमिनियम पर 50 प्रतिशत टैरिफ बरकरार हैं। ताइवान के उद्योगपति चिंतित हैं कि टेक्सटाइल, मशीन टूल्स और साइकिल जैसे क्षेत्र प्रभावित होंगे।
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