नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से अमेरिकी डॉलर (American Dollar) के मुकाबले भारतीय रुपये (Indian Rupee) में गिरावट आ रहीहै और यह 90 रुपये प्रति डॉलर का मनोवैज्ञानिक स्तर (Psychological level Rs 90 per dollar) तोड़ चुका है। विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये की इस कमजोरी का मिश्रित असर दिखेगा। कुछ क्षेत्रों खासकर श्रम प्रधान निर्यात क्षेत्रों को इसका बड़ा फायदा मिल सकता है। वहीं, कई मोर्चों पर दबाव भी बढ़ेगा। आने वाले दिनों में पेट्रोल, डीजल से लेकर कई वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।
असली झटका अमेरिकी टैरिफ से
एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ ही रुपये की कमजोरी की सबसे बड़ी वजह हैं। अमेरिका ने अगस्त में भारत के मुख्य निर्यातों पर 50% तक का टैरिफ लगा दिया। चीन, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों पर यह टैरिफ 15-30% ही है।
इसका असर यह हुआ कि इस साल अक्टूबर में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 41.68 अरब डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गया। जबकि चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अक्तूबर के दौरान व्यापार घाटा 78.14 अरब डॉलर तक पहुंचा था। यानी अक्तूबर के दौरान घाटे में तेजी देखी गई। हालांकि, इस उछाल का मुख्य कारण सोने के आयात में तेज वृद्धि है।
सरकार और आरबीआई के कदम
अमेरिकी शुल्क द्वारा उपजे इसे व्यापार घाटे से उबरने के लिए सरकार और आरबीआई ने अपने स्तर पर कई कदम उठाए हैं। सरकार ने निर्यात को बढ़ाने और प्रभावित हुए क्षेत्रों को राहत देने के लिए कई देशों के साथ व्यापार समझौतों पर बातचीत तेज की है। वहीं, आरबीआई ने रुपये को ‘खास स्तर’ पर बनाए रखने के लिए हाथ खींचे हैं।
इसका मतलब है कि आरबीआई रुपये की गिरावट थामने के लिए अधिक दखल नहीं देगा। आरबीआई गवर्नर ने भी कहा है कि रुपये की हालिया कमजोरी बाजार की स्वाभाविक चाल का नतीजा है। लगभग 3-3.5 फीसदी की सालाना गिरावट लंबी अवधि के ट्रेंड के हिसाब से ही है। गौरतलब है कि रुपये में इस साल 5.3 फीसदी की तेज गिरावट आई है, जो 2022 के बाद सबसे अधिक है।
निर्यातकों को फायदा, आयातक प्रभावित होंगे
विशेषज्ञों का कहना है कि रुपये की इस गिरावट का फायदा भारतीय निर्यात क्षेत्र खासतौर पर आईटी सेक्टर, टेक्सटाइल, इंजीनियरिंग और फार्मा बाजार में देखने को मिलेगा। कमजोर रुपया भारतीय सामान को दुनिया में सस्ता दिखाता है, जिससे निर्यात बढ़ने की संभावना होती है।
डॉलर में कमाई करने वाले इन क्षेत्रों को रुपये की कमजोरी से अधिक लाभ मिलता है। लेकिन इसके उलट, कच्चा तेल, गैस, मशीनरी, रसायन और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसी आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। इससे देश में महंगाई का दबाव बढ़ सकता है।
इन क्षेत्रों में राहत संभव
1. इलेक्ट्रॉनिक्स और मोबाइल : भारत ने हाल के वर्षों में मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स बड़ा निर्यात किया है।
2. केमिकल्स और फार्मा : इनका निर्यात बढ़ सकता है क्योंकि वैश्विक कीमतों के मुकाबले भारतीय कीमत सस्ती दिखेगी।
3. मशीनरी और ऑटो-पार्ट्स : मशीनरी और इंजीनियरिंग उत्पादों में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
इन पर मिश्रित प्रभाव
1. टेक्सटाइल्स और वस्त्र : यह क्षेत्र कीमत के लिहाज से संवेदनशील है लेकिन कमजोर रुपया कुछ हद तक मददगार साबित हो सकता है।
2. हथकरघा/हैंडीक्राफ्ट/ज्वेलरी : कुछ में लाभ होगा लेकिन बहुती सी इकाइयां कच्चे सोने और कच्चे माल के लिए आयात पर निर्भर है इसलिए असर मिश्रित होगा।
कमजोरी से आम लोगों पर असर
– पेट्रोल-डीजल और गैस कीमतें बढ़ सकती हैं।
– विदेश में पढ़ाई, यात्रा और इलाज और महंगा होगा।
– आयातित मोबाइल, लैपटॉप और इलेक्ट्रॉनिक्स का खर्च बढ़ सकता है।
– विदेशी लोन लेने वालों को EMI बढ़ने का जोखिम होगा।
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