सौर ऊर्जा | भारत इस दशक के अंत तक बड़ा उलटफेर करने वाला है। वह दुनिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा (PV) मैन्युफैक्चरिंग अड्डों में से एक बनने की राह पर है। 2025 से 2029 के बीच लगभग 213 गीगावॉट (GW) नई सौर क्षमता स्थापित होने की उम्मीद है। साथ ही, मॉड्यूल बनाने की क्षमता 280 GW से अधिक हो जाएगी। सेल बनाने की कैपेसिटी 2025 में 26 GW से बढ़कर 2029 तक लगभग 171 GW तक पहुंच जाने के आसार हैं। यह जानकारी EUPD रिसर्च नाम की जानी-मानी शोध संस्था की रिपोर्ट से सामने आई है। इसका शीर्षक 'इंडियाज सोलर सर्ज: द नेक्स्ट लूमिंग पीवी प्राइस शॉक?' है। रिपोर्ट बताती है कि भारत का सौर ऊर्जा क्षेत्र अब परिपक्वता और वैश्विक महत्वाकांक्षा के एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है। इसका फोकस अब सरकारी पहलों से हटकर प्रतिस्पर्धा, तकनीक और स्थिरता पर अधिक है।
इस बड़े पैमाने पर विस्तार से भारत के लिए निर्यात के बड़े अवसर पैदा हो रहे हैं। अगर मॉड्यूल बनाने की क्षमता का 65% इस्तेमाल किया जाता है तो 2030 तक भारत लगभग 143 GW मॉड्यूल का निर्यात कर सकता है। क्षमता का यह लेवल ज्यादातर निर्माताओं के लिए लागत वसूलने का पॉइंट है।
भारत को तलाशने होंगे नए बाजार
अमेरिका ऐतिहासिक रूप से भारत से सबसे ज्यादा सौर मॉड्यूल खरीदता रहा है। लेकिन, अब वहां व्यापार नियमों में सख्ती आ गई है। ऐसे में भारतीय निर्माताओं को उत्पादन बनाए रखने और अपने बाजारों को फैलाने के लिए यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका (MEA) जैसे क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान देना होगा।EUPD ग्रुप के संस्थापक और सीईओ मार्कुस ए.डब्ल्यू. होएनर ने कहा, 'भारत के सोलर मैन्युफैक्चरिंग में उछाल ने बड़े पैमाने पर उत्पादन तो दिया है, अब फोकस ग्लोबल कॉम्पिटिशन पर होना चाहिए। सबसे मजबूत बाजारों और उनके हितधारकों की पहचान करना और उभरती स्थिरता और गुणवत्ता की आवश्यकताओं को पूरा करना लॉन्ग-टर्म सक्सेस के लिए जरूरी होगा।'
भारत और चीन के बीच अंतर हो रहा कम
पिछले एक साल में भारत की लागत स्थिति में सुधार हुआ है। टनल ऑक्साइड पैसिवर्सटेड कॉन्टैक्ट (TOPCon) मॉड्यूल की कीमतों में भारत और चीन के बीच का अंतर 2024 की शुरुआत में $9W से घटकर अक्टूबर 2025 तक $5.7W रह गया है। यह सुधार ऑटोमेशन, बड़े पैमाने पर उत्पादन, इंटीग्रेशन और उत्पादन दक्षता में हुई प्रगति के कारण हुआ है। हालांकि, भारत में न्यूनतम टिकाऊ कीमतें अभी भी चीन और दक्षिण पूर्व एशिया की तुलना में 14% से 17% अधिक हैं। यह दर्शाता है कि तकनीकी और परिचालन सुधारों की अभी भी जरूरत है।
भारत को उन बाजारों में मजबूत स्थिति बनाने में मदद करने वाले कई संरचनात्मक फायदे हैं जहां स्थिरता को बहुत महत्व दिया जाता है, जैसे कि यूरोप। भारत से यूरोप तक माल ढुलाई की लागत मॉड्यूल की कीमत का लगभग 5% है, जबकि चीन से शिपिंग की लागत 8.7% है। इसके अलावा, इस मार्ग पर शिपिंग से होने वाला प्रदूषण चीन की तुलना में लगभग 65% कम है। ये फैक्टर यूरोपीय संघ (ईयू) के औद्योगिक और कार्बन-संबंधी नियमों का पालन करने में मदद करते हैं।
प्रस्तावित ईयू-इंडिया फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (मुक्त व्यापार समझौता) भी इस दिशा में और रफ्तार प्रदान कर सकता है। इससे टेस्टिंग और सर्टिफिकेशन की आपसी मान्यता मिल सकती है। साथ ही, संयुक्त निवेश और प्रौद्योगिकी सहयोग के अवसर भी बढ़ सकते हैं। यह समझौता भारत के सौर ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक बड़ा बढ़ावा साबित हो सकता है।
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