व्यापार: भारतीय रिजर्व बैंक के नियामक सुधारों के कारण एसबीआई अपने 2018 के घाटे से 100 अरब डॉलर की कंपनी बन गई। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने यह दावा किया। एसबीआई बैंकिंग और इकोनॉमिक्स कॉन्क्लेव 2025 को संबोधित करते हुए गवर्नर ने कहा कि भारत के बैंकिंग क्षेत्र में परिवर्तन एक मजबूत नियामक ढांचे के साथ-साथ आरबीआई व सरकार की ओर से शुरू किए गए प्रमुख नीतिगत उपायों से संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष अभी बता रहे थे कि 2018 में वे घाटे में थे। और अब वे 100 अरब डॉलर की कंपनी है।
आईबीसी ने क्रेडिट संस्कृति को पूरी तरह बदल दिया
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 2016 में लागू किए गए दिवाला व शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) ने देश की क्रेडिट संस्कृति को पूरी तरह बदल दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस कानून ने उधारकर्ताओं में वित्तीय अनुशासन बढ़ाया है और बैंकों की परिसंपत्तियों की गुणवत्ता में सुधार किया है।
मौद्रिक के साथ-साथ आर्थिक स्थिरता भी मजबूत हुई
मल्होत्रा ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े सुधार किए गए हैं, जिनसे न केवल मौद्रिक स्थिरता बल्कि व्यापक आर्थिक स्थिरता भी मजबूत हुई है। इनमें लचीली मुद्रास्फीति टार्गेटिंग व्यवस्था को अपनाना, फॉरेक्स मार्केट को गहराई देना और कैपिटल अकाउंट को धीरे-धीरे उदार बनाना जैसे कदम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि इन सुधारों ने वित्तीय प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा दिया है, जिससे भारतीय बैंकिंग सेक्टर की नींव और मजबूत हुई है।
2014 के बाद भारत ने नए सिद्धांत पर काम किया
मल्होत्रा ने कहा कि एक समय ऐसा भी था जब भारत को दुनिया की फ्रैजाइल फाइव अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता था और उस दौर में देश की वित्तीय प्रणाली पर गहरा दबाव था। लेकिन 2014 के बाद से, 'कभी भी अच्छे संकट को बर्बाद न करें' के सिद्धांत पर चलते हुए, भारत ने वित्तीय तंत्र की दीर्घकालिक मजबूती के लिए बुनियादी सुधार शुरू किए।
उन्होंने बताया कि यह परिवर्तन तीन प्रमुख स्तंभों पहचान, समाधान और पुनर्पूंजीकरण पर आधारित था। 2015 में शुरू हुई परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा (AQR) प्रक्रिया ने बैंकों को अपने वास्तविक लोन बुक की स्थिति पहचानने और छिपे हुए एनपीए को सामने लाने के लिए बाध्य किया। इसी के साथ, त्वरीत सुधारत्मक कार्रवाई (PCA) ढांचे ने कमजोर बैंकों की सेहत सुधारने में अहम भूमिका निभाई।
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